दिल और आत्मा के अदृश्य रिश्ते
Emotionsकभी-कभी ज़िंदगी में कुछ ऐसा घटता है, जो हमारी समझ से परे होता है। जैसे — कोई हमें दूर कहीं से याद कर रहा हो, हमारे बारे में सोच रहा हो… और उसी पल हम भी अनायास ही उसके ख्यालों में खो जाएँ। या फिर कोई हमें कहीं से महसूस कर रहा हो, और बिना किसी वजह के हम उसके सामने पहुँच जाएँ — जैसे कोई अदृश्य डोर हमें खींच लाई हो।
एक बार की बात है — मैं अपने कमरे में था, जो घर की दूसरी मंज़िल पर है। मैं अपने पर्सनल कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा था। उसी वक़्त मेरे चाचा को मुझसे एक ज़रूरी काम था, और वे नीचे से मेरी खिड़की की ओर देख रहे थे — जैसे उन्हें यक़ीन हो कि मैं वहीं हूँ। लेकिन उससे पहले कि वे मुझे देख पाते, मैंने खुद ही खिड़की से झाँककर उन्हें देख लिया — जैसे उनके मन की पुकार सीधे मुझ तक पहुँच गई हो।
यह पहली बार नहीं था। मुझे कई बार ऐसा अनुभव हुआ — ख़ासकर अपने मोहल्ले के दोस्तों के साथ। जब भी कोई मुझे दिल से याद करता, मैं किसी अनजानी प्रेरणा से खुद ही उनके पास पहुँच जाता। यह कोई संयोग भर नहीं था, यह एक अहसास था — एक जुड़ाव, जो शब्दों से परे था।
मगर इन सबमें एक वाक़या ऐसा था… जो इन तमाम अनुभवों से कहीं ज़्यादा गहरा और असरदार था।
एक लड़की थी — वह हमारे घर अक्सर मेरी माँ से कुछ सीखने के सिलसिले में आया करती थी।
न जाने कब, उसे मुझसे प्रेम हो गया — जिसमें मेरी कोई भूमिका नहीं थी। मैंने तो उसे कभी सही से देखा तक नहीं था।
मैं उसे नज़रअंदाज़ करता रहा, क्योंकि उस समय मेरा पूरा ध्यान बोर्ड एग्ज़ाम की तैयारी में लगा हुआ था। मैं उस वक़्त टीनएज के नाज़ुक दौर से गुज़र रहा था, जहाँ दिल और दिमाग़ के बीच अक्सर टकराव चलता रहता है।
फिर एक दिन ऐसा हुआ, जब उसने खुद ही यह साफ़ कर दिया कि वह मुझसे बहुत गहराई से जुड़ चुकी है।
मुझे तब हैरानी हुई, जब एहसास हुआ कि वह ऐसे परिवेश से आती है, जो मेरे घर-परिवार और समाज से बिल्कुल अलग था। बात सिर्फ प्रेम की नहीं थी — हमारे बीच धर्म की ऊँची दीवारें खड़ी थीं। मेरा धर्म अलग था, उसका धर्म भी अलग था, और वह अपने धर्म की एक उच्च जाति से थी — जहाँ प्रायः केवल समान वर्ण में विवाह को ही मान्यता दी जाती है। वहाँ अंतर-जातीय विवाह भी कठिन होता है, और मेरे धर्म से उसका संबंध उनके समाज के लिए और भी बड़ा विषय था। क्योंकि यहाँ तो सिर्फ जाति नहीं, बल्कि धर्म ही अलग था। तभी मुझे समझ आ गया था कि यह रिश्ता आसान नहीं होगा।
जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया, तो वह मुझसे कुछ नाराज़-सी हो गई। लेकिन उस समय मेरी तरफ़ से कोई गलती नहीं थी। मैं भले ही टीनएजर था, लेकिन हर निर्णय लेने से पहले उसके परिणामों को तौलने की आदत मुझमें पहले से थी।
मैं उन लोगों में नहीं था जो किसी की ज़िंदगी से खेल जाएँ — और वह भी वैसी नहीं थी। उसका इरादा भी पवित्र था; वह मुझसे जीवनभर का साथ चाहती थी।
उसकी खूबसूरती और सच्ची भावनाओं के बावजूद, मेरा मन एक ही बात में उलझा रहा — इस रिश्ते में आने वाली संभावित कठिनाइयाँ।
जीवन की उलझनों और सामाजिक दबावों को देखते हुए, मैंने एक दिन शांत मन से निर्णय लिया, और सम्मानपूर्वक उसका हमारे घर आना बंद करवा दिया।
शायद सच्चा प्यार करने वालों को मेरा यह फ़ैसला ग़लत लगे, लेकिन मैंने जो किया, वह उसके परिवार की भलाई के लिए किया था — और इसीलिए, अपने दिल को समझाते हुए, मैंने खुद को सही ठहराया।
वक़्त बीतता गया…
एक दिन मैं चाय पीने के बाद अपने कमरे की सफ़ाई कर रहा था। सफ़ाई करते-करते जैसे ही मैं अंदर वाले कमरे में पहुँचा, न जाने क्यों, मैं अचानक तेज़ी से अपने कमरे की ओर भागा।
मैंने खिड़की से बाहर झाँका — वही लड़की, अपने भाई के साथ, हमारे घर के सामने से गुज़र रही थी।
उस समय मेरा इस बात पर ध्यान नहीं गया कि बाहर कोई आवाज़ नहीं आई थी, कोई हलचल नहीं थी — फिर भी मैं अचानक बाहर क्यों झाँकने चला गया।
थोड़ी देर बाद — उसी दिन — मैं वॉशरूम में था। जैसे ही बाहर निकलने को था, मेरा ध्यान अचानक दरवाज़े की कुंडी से हटकर ऊपर वाले रोशनदान की तरफ चला गया।
हमेशा की तरह कुंडी की ओर देखते हुए वॉशरूम से बाहर निकलने के बजाय, आज मैंने दरवाजे के रोशनदान से बाहर देखा — और वही लड़की, फिर से, अपने भाई के साथ हमारे घर के सामने से गुज़र रही थी। कुछ देर पहले जाते हुए देखा था, अब लौटते हुए देख रहा था।
तभी मुझे अचानक एहसास हुआ — जब भी वह हमारे घर के सामने से गुज़रती थी, मैं अनजाने में उसे देखने के लिए बाहर झाँकने लगता था।
पता नहीं ऐसा क्यों होता था कि जब वो हमारे घर के सामने से निकलती, तो मैं अनायास ही बाहर झांकने चला जाता — जबकि उस वक्त मुझे ये भी नहीं मालूम होता था कि मैं आखिर किसे देखने जा रहा हूँ।
मैं भले ही जान-बूझकर उसे याद न करता था, लेकिन मेरा मन उससे जुड़ा हुआ था।
मैंने उसे चाहा या नहीं, यह कहना कठिन है — लेकिन वह मेरे जीवन का हिस्सा बन चुकी थी।
इसलिए जब वह आसपास होती थी, मेरा अचेतन मन जैसे खुद-ब-खुद सतर्क हो जाता था।
शरीर अनायास प्रतिक्रिया देता था — जैसे अचानक खिड़की की ओर दौड़ पड़ना, बिना सोचे-समझे।
कुछ संबंध ऐसे होते हैं, जो शब्दों में समझाए नहीं जा सकते। इंसानों के बीच एक सूक्ष्म, अदृश्य भावनात्मक धागा जुड़ जाता है — जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।
मेरा अंतर्ज्ञान बार-बार सही सिद्ध हो रहा था, क्योंकि वो भावनाएँ सच्ची थीं। मेरी चेतना, मेरे भीतर का गहरा अस्तित्व, उससे किसी न किसी रूप में जुड़ चुका था।
निष्कर्ष:
यह सिर्फ प्रेम नहीं था — यह आत्मा से आत्मा का जुड़ाव था।
मन भले कुछ और कहे, लेकिन आत्मा जिसे पहचान ले, उसे नकारा नहीं जा सकता।
और जब आत्माएँ जुड़ जाती हैं — तो फिर इंसानी चेतना से परे भी बहुत कुछ महसूस होने लगता है।