फाल्गुनी और हिमेश: मेरे बचपन और टीनएज की आवाज़ें
Nostalgiaवैसे तो हम सभी ने कई बड़े-बड़े शख्सियतों की गायकी सुनी है, उन्हें पसंद किया है और आज भी करते हैं। हम उन्हें सुनते हैं, उनके हुनर को मानते हैं। मैंने भी उस्ताद नुसरत फ़तेह अली ख़ान साहब को खूब सुना है, लता मंगेशकर जी को भी, और रविंद्र जैन जी द्वारा "राम तेरी गंगा मैली" में दिया गया संगीत भी मुझे बहुत पसंद है। ख़ासकर इन तीनों संगीतकारों का कोई जवाब नहीं।
पर इन तीनों के अलावा भी दो संगीतकार हैं, जिन्होंने मेरे जीवन में एक सुनहरी छाप छोड़ी है — फाल्गुनी पाठक जी और हिमेश रेशमिया जी।
आज भले ही मैं उन्हें उतना नहीं सुनता, लेकिन बचपन और टीनएज में मेरी तरह कई लोगों ने उन्हीं लम्हों को जिया होगा, जिनका ज़िक्र मैं करने जा रहा हूँ।
तो शुरुआत करते हैं फाल्गुनी पाठक जी से।
बचपन में जब मैं डेक के पास बिखरी हुई कैसेट्स को सही क्रम में रखने का काम करता था, तब मुझे सबसे अलग एक लड़की की तस्वीर अपनी ओर खींचती थी — फाल्गुनी पाठक जी की।
हंसती, मुस्कुराती, बॉय कट में एक लड़की, जो लड़कों जैसे कपड़े पहने होती थी। बचपन की कच्ची समझ में मैं यही सोचता था कि ये लड़कों जैसे कपड़े क्यों पहनती हैं।
लेकिन जब उन्हें सुनता, तो हैरान रह जाता — कितनी मीठी और सुरिली आवाज़ है!
पर एक चीज जो बार-बार मुझे फाल्गुनी पाठक जी से जोड़ती थी, वह था उनका वह गीत जो अक्सर टीवी पर आता था — "मेरी चुनर उड़ उड़ जाए"।
इस गीत को देखकर मैं एक अलग ही दुनिया में खो जाया करता था।
अकेले में कभी-कभी डर भी लगता था, क्योंकि उस समय मैं बहुत छोटा था, और इस गीत में दिखाई गई चीजें अद्भुत और अलौकिक लगती थीं — जैसे शुरुआत में सीढ़ियों से उतरती हुई एक सख्त दिखने वाली महिला, तस्वीर से निकलकर जीवित हो जाने वाली औरत, और फिर ऊनी नस्ल की गाय।
ये सब मुझे कभी डरावना तो कभी अद्भुत लगता था, खासकर जब घर पर अकेला होता।
एक और गीत था — "इन्धना विनवा"।
इस गीत में अभिनेत्री द्वारा पहना गया कार्निवल कॉस्टयूम मेरी समझ से बाहर था। बचपन में वह मास्क और पोशाक फैशनेबल नहीं, बल्कि अजीब से लगते थे।
इस गीत का एक गुजराती वर्जन भी था, जो मेरी दिवाली की यादों से जुड़ा हुआ है।
याद है, एक बार दिवाली के दिन पापा हमारे घर का पूरा म्यूज़िक सिस्टम अपनी दुकान ले गए थे। वहाँ सिर्फ फाल्गुनी पाठक जी के ही गीत बज रहे थे —
🎶 "इन्धना विनवा गई थी मोरे सैंया..."
🎶 "आई परदेस से परियों की रानी..."
🎶 "कैसे आंख मिलाऊं..."
🎶 "चूड़ी जो खनकी..."
वो दिवाली क्या खूब थी!
हर ओर अद्भुत रौनक थी, ऐसी कि आज के समय में उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
पापा वेल्डिंग में इस्तेमाल होने वाली गैस से गुब्बारे फुला रहे थे, जिन्हें आग से फोड़ने पर इतनी धमाकेदार आवाज़ आती थी कि बड़े से बड़ा पटाखा भी फीका लग रहा था। दुकान पर उनके दोस्तों का जमावड़ा था, संगीत की धुनें थीं, रोशनी थी, चहल-पहल थी, और चारों ओर मिठाई, नारियल, खील, बतासों की खुशबू फैली हुई थी — और फिर रात को रिक्शे पर म्यूज़िक सिस्टम और गैस का सारा सामान लादकर घर लौटना... मोहल्ले में भी वही रौनक थी, वही चमक-दमक हर कोने में बिखरी हुई थी, और फाल्गुनी जी के गीत — जैसे उसी पल की धड़कन बन गए थे।
कसम से, वैसी दिवाली फिर कभी नहीं आई।
फिर जब टीनएज का दौर आया, तो एक और सितारा चमका — हिमेश रेशमिया जी।
वो भी फाल्गुनी पाठक जी की तरह काफी लंबे समय तक छाए रहे।
फाल्गुनी पाठक जी के संगीत की एक अलग सी मिठास थी, और हिमेश जी के संगीत में एक अलग ही दर्द, दीवानगी और पकड़।
आज जब मैं उनके कुछ गीत सुनता हूँ, तो टीनएज के वो पल फिर से मन में जाग उठते हैं।
याद है, जब मैं ट्यूशन पढ़ने जाया करता था अपने मोहल्ले के दोस्तों के साथ — क्या दिन थे वो!
हर गली, हर नुक्कड़, हर दुकान में सिर्फ हिमेश जी के ही गीत बजते थे —
🎶 "आपकी खातिर मेरे दिल का जहाँ है हाज़िर..."
🎶 "तू याद न आये ऐसा कोई दिन नहीं..."
🎶 "ओ... हुज़ूर, तेरा तेरा तेरा सुरूर..."
🎶 "आहिस्ता आहिस्ता..."
याद है, एक बार ग्वालियर में एक पैलेस में शादी का रिसेप्शन था।
मेरी फैमिली उस जगह का रास्ता पूछ-पूछ कर उस मुकाम तक पहुँच रही थी। वहाँ भी हिमेश जी का ही जलवा था —
🎶 "ज़र्रे ज़र्रे से मैं तेरी आहट सुनता हूँ, तेरे ही ख्वाबों की झालर में बुनता हूँ..."
🎶 "तू ही मेरे अरमानों में, तू ही मेरे अफसानों में..."
🎶 "तू ही आरज़ू है, तू ही मेरा प्यार है..."
🎶 "अफसाना बनाके भूल न जाना..."
हिमेश जी द्वारा "मैं जहाँ रहूं" गीत भी हर दिल पर छाया हुआ था।
इसे कृष्णा बेउरा जी ने राहत फ़तेह अली ख़ान साहब के साथ गाया था, और इसके बोल जावेद अख्तर साहब ने लिखे थे।
एक और गीत था — "आपकी कशिश", जिसे कृष्णा बेउरा जी ने हिमेश जी के साथ गाया था, और इसके बोल समीर जी ने लिखे थे। वो गीत भी लाजवाब था:
"आपकी कशिश सरफ़रोश है,
आपका नशा यूँ मदहोश है,
क्या कहें तुमसे, जाने जा
गुम हुआ होश है..."
इस गीत में फीमेल सिंगर अहीर जी की आवाज़ भी बहुत दिल को छूने वाली थी —
"जाना ये, जाना, ये मैंने जाना,
तू मेरा, तू मेरा दीवाना..."
गीतकार के तौर पर समीर जी का भी हिमेश जी के संगीत में बहुत बड़ा योगदान रहा।
बस यही थे वो पल — जो आज भी याद आते हैं, तो मुस्कान भी लाते हैं और आँखें भी नम कर जाते हैं।
फाल्गुनी पाठक जी और हिमेश रेशमिया जी — मेरे बचपन और टीनएज के वो संगीतकार, जिनकी धुनों में मेरा पूरा बचपन और जवानी महकती है।