दिखावे की दुनिया: भेड़चाल एक्सप्रेस में सवार महानुभाव
Satireआपका सामना कभी न कभी उस महापुरुष से ज़रूर हुआ होगा जो सोचता है कि अगर वह अमीरों में उठे-बैठेगा, तो बेशक उसकी आत्मा भी स्विस बैंक में ट्रांसफर हो जाएगी। और अगर पढ़े-लिखों के बीच बैठेगा, तो लोग उसे बिना डिग्री के प्रोफेसर मान लेंगे।
ये जनाब एटीट्यूड से ऐसे लबालब होते हैं जैसे पहली बारिश में गली का नाला। अमीरों से दोस्ती हो जाए तो इनका सुर अचानक बदल जाता है—अब ये सिर्फ उनके ही गुण गाते हैं, उनके साथ बैठकर दो कौड़ी के जोक्स पर भी ऐसे ठहाके लगाते हैं जैसे हँसी का कॉन्ट्रैक्ट इन्हीं के नाम है।
इनकी सोच का आलम ऐसा होता है कि ये भीड़ का हिस्सा नहीं, बल्कि भेड़चाल के CEO होते हैं। जहाँ देखो, ज्ञान की गंगा बहा रहे होते हैं—इतनी गहराई से कि खुद को भी डुबो देते हैं।
दोस्तों के बीच ये किसी की ज़िन्दगी के फैसलों पर ऐसा भाषण देते हैं कि सामने वाला खुद को 'कमतर' मान ले। और फिर माहौल ऐसा बना देते हैं कि लगे बस यही सबसे स्मार्ट हैं, और बाकी सब 'मासूम मूर्ख'।
असल बात? इन्हें जलन होती है उन लोगों से जो इनसे बात नहीं करते, और इन्होंने जो अमीर बनने की स्क्रिप्ट लिखी है, उसमें वो लोग फिट नहीं बैठते।
अगर ये सामने मिल जाएँ तो गर्मजोशी से हाथ मिलाएँगे, लेकिन WhatsApp पर मैसेज देखकर भी अनदेखा करेंगे—और जवाब भी देंगे तो ऐसे जैसे उनका वक्त खरीदना पड़े। बिजी तो ऐसे होते हैं जैसे NASA के मिशन में लगे हों।
पैसा आता है तो सुकून नहीं, अमीरों वाले स्टेटस लगाए जाते हैं। फोकस होता है—बड़ी कार, बड़ी छत और बड़ी दिखावट। घर में कौन खुश है? इससे इनका क्या लेना-देना?
और जब असलियत से सामना होता है—कोई असली इंसान इनकी नकली दुनिया को नजरअंदाज करता है—तो बेचैनी में ये इधर-उधर भटकते हैं। चेहरे पर ऐसा मूड होता है जैसे Netflix ने सब्सक्रिप्शन कैंसल कर दिया हो।
ऐसे शख्स अगर आपकी जिंदगी में हैं, तो समझिए आपको मुफ्त का डायलॉग-ड्रामा मिल रहा है। लेकिन सलाह एक ही है—उन्हें देखिए, मुस्कुराइए, और फिर उन्हें दिमाग से डिलीट कर दीजिए।
क्योंकि ऐसे लोग सिर्फ वक्त नहीं, आपकी आत्मा का नेटवर्क भी स्लो कर देते हैं।