आजकल के त्योहार: डिजिटल दुनिया ने कैसे बदल दी रौनक?
Emotionsयाद है मुझे वो दिन, जब त्योहारों पर एक अलग ही रौनक छा जाती थी।
हर कोना महक उठता था, हर चेहरा मुस्कुराता था।
अब तो जैसे वो खुशबू कहीं खो सी गई है।
आजकल लोग डिजिटल दुनिया को दोषी ठहराते हैं,
लेकिन सच कहूँ तो वजह सिर्फ मोबाइल या इंटरनेट नहीं है।
असल में वो खुशबू कहीं और नहीं, हमारी रूह से ही गायब हो गई है।
याद हैं वो दिन,
जब त्योहारों पर घरों में पकवान बनते थे,
रसोई से उठती खुशबू दिल तक पहुँचती थी,
लोगों की मदद करना एक बोझ नहीं,
बल्कि दिल को सुकून देने वाला अनुभव होता था।
हर साल घरों में बजता धार्मिक संगीत,
त्योहारों को जीवंत कर देता था।
आज भी वही गीत बजते हैं,
लेकिन अब उनमें वो जान, वो आत्मा नहीं रही।
माहौल तो जैसे बनावटी सा हो गया है।
अब हर कोई मोबाइल में व्यस्त है,
चाहे कोई जरूरी संदेश न आया हो,
फिर भी मोबाइल थामे रहना जरूरी समझते हैं।
आज हालत ये है कि अगर आप किसी से बात करना चाहें,
तो उसकी नज़र आप पर नहीं, मोबाइल स्क्रीन पर रहती है।
कहीं न कहीं अब यह आदत बन चुकी है —
जैसे दो मिनट बिना मोबाइल के रहे तो कुछ खो जाएगा।
पहले लोग घंटों आपके पास बैठते थे,
अब बहाना है — "रुको, एक कॉल आया है।"
पूरा दिन बेमतलब की रील्स और शॉर्ट्स देखते हुए बीतता है —
खान-पान, झूठा प्यार, दिखावटी सलाह,
और फिर शाम को धर्म-कर्म के कार्यक्रम में शामिल होकर,
रात को फिर वही मोबाइल और फिर नींद...
यही हैं आज के त्योहार...